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Aug 1, 2014

नफ़े नुकसान के शहर में...


कुछ सीली सी यादें, एक गीला-सा मन लिये बैठी हूँ 
तमन्नाओं ख़्वाबों के नासमझ -रंगीन दिए जलाये बैठी हूँ

रेतों पर निशां को हाथों में समेटे बैठी हूँ 
हाथों की लकीरों में छप जाये वो, बस यही फ़रियाद लिये बैठी हूँ 

शब्दों की स्याही में नाम उसका लिए बैठी हूँ 
प्रेम ग्रन्थ लिख मिल जाये वो, बस यही उम्मीद लिये बैठी हूँ 

जहाँ के चमन में उसकी महक लिए बैठी हूँ 
जीवन के सहरा में वही गुलाब खिल जाये, बस यही दुआ लिये बैठी हूँ 

नफ़े नुकसान के शहर में हारती हर दम सी बैठी हूँ 
किसी दिन आके खरीद ले वो मुझे, बस यही ख्वाब लिये बैठी हूँ … 


Image Courtesy: Google Images