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Oct 24, 2008

कल और आज...

बदला न अपने आप को जो थे वही रहे,
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे.


दुनिया ना जीत पाओ तो हारों ना खुद को तुम,
थोडी बहोत तो झहन में नाराज़गी रहे.


अपनी तरह सभी को भी किसी कि तलाश थी,
हम जिसके भी करीब रहे दूर ही रहे.


गुजरो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो,
जिसमे खिले हैं फूल वह डाली हरी रहे.

2 comments:

  1. Nice one. The third stanza was moving.

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  2. Ya, I feel everyone is looking for somebody with whom he can be himself/herself, but somehow there are lot of self-imposed limitations/restrictions.

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