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Feb 29, 2012

आज फिर!

पलकों में ख्वाब लिए
आज इंतज़ार किया,
उस पैगाम का जो आया ही नहीं,
तुम्हारी साँसों में मेरा नाम नहीं
शायद आज!

आँखें बंद कर देखा मैंने
गहरे समंदर का विस्तार
याद किया नीले आकाश वाला
तुम्हारा वो प्यार, मगर बादल
बरसे आज और मेरी आँखें भी!

दिल पर हाथ रख मैंने
महसूस किया धडकनों का पागल वेग,
भाग रही थी बेतहाशा तुम्हे खोजती हुई
मगर नहीं आये तुम,
कई और दिनों की ही तरह.
पागल नादान धड़कने रूठी बैठी है अब!


नीले समंदर और नीले आकाश
में तस्वीर है तुम्हारी और तुम्हारा रंग भी,
चाहकर भी नहीं छूट पाता
जीवन में यही रंग बचा हो जैसे,
बाकी सारे रंगों से जीवन अनजान है अब शायद!

आज फिर इंतज़ार ही नाम
था मेरा दूसरा ,
बस इतना बता दो,
तुम्हारा क्या नाम था? 

22 comments:

  1. wow!!!!!!Shaifali just mind blowing poem.....
    read it twice-threice........love it...........

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    1. Thanks a lot Indu. I am glad a beautiful poetess like you, liked my words :)

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  2. इंतज़ार ..............इबादत है.....करती रहो!!

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    1. Nidhi, honestly its not a self expression. I was inspired by a few poems on some blogs which I read regularly. Anyways. thanks for your beautiful comment.

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  3. चुन-चुन कर शब्दों का आपने प्रयोग किया रचना है लाजवाब!!!

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    1. Sanjay, thanks for being a regular reader of my blog. Your comments are always welcome.

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  4. Bahut hi sunder kavita Shafali....

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  5. Beautiful. You described longing in a lovely way...:)

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    1. Thanks a lot Saru. I am glad you mentioned the essence of the poem 'longing'.

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    2. It is one of my favorite emotions on which I love to write. It is so complex that you always have many things to say...Isn't it???

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  6. बहुत ही बढ़िया रचना है....बेहतरीन अभिव्यक्ति..

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  7. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  8. bahut sundar

    aapko परिवार सहित होली की बहुत बहुत ढेरों शुभकामनाएं , यह पर्व आपके जीवन में खुशियाँ और उमंग लेकर आये

    बसंत की जवानी है होरी ....>>> संजय कुमार
    http://sanjaykuamr.blogspot.in/

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  9. Eternal wait! Beautiful lines :)

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  10. शैफाली जी, प्यार में विरह और इंतज़ार के पल बहुत अहमियत रखते हैं..जब ये पल कचोटते हैं दिल को जो आह उठती है वो कविता के सिवाय और क्या हो सकता है...महाकवि निराला की पंक्तियाँ याद आती हैं..."वियोगी होगा पहला कवि..आह से उपजा होगा गान......."
    बहुत सुन्दर और अनुपम कृति...बहुत बहुत बधाई.

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  11. :)
    प्यारी सी कविता है!!

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  12. इंतज़ार किया उस पैग़ाम का , जो आया ही नहीं …

    आदरणीया शैफाली जी
    सस्नेहाभिवादन !

    आपकी रचना में गहरी संवेदना है …
    आभार !

    ~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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