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Feb 13, 2013

हरसूं तुम ...




सूरज की कविता कहूँ या 
चाँद का जिक्र करूँ ...

खुशबू में इठलाऊ या 
तितलियों में रंग भरूँ ...

पहाड़ों में गुनगुनाऊ या
दरख्तों में विचरण करूँ ...

शब्दों में सजाऊं या 
एहसासों में पिरोउं  ...

... हर भाव 
    हर प्रकृति 
    हर सीरत 
    हर सूरत 
बस तुम्हें ही पाऊं !

7 comments:

  1. बस तुम्हें ही पाऊँ.....सुंदर रचना .....

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  2. आपकी यह कविता प्रेम की उद्दात भावनाओं को प्रकट करती है

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  3. फुर्सत मिले तो शब्दों की मुस्कुराहट आने वाले दिनों में पर ज़रूर आईये !

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  4. बस,यही प्यार है.
    हर जगह बस तुम ही तुम हो

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  5. veyr Rumiish :) ..guess thats what love is all about.... beautifully expressed!

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