Pages

Jul 8, 2013

अस्तित्व को तलाशती...




कपड़ो की तह में 
फुल्कों की नरमाई में 
ढूंढ़ती खुद को वो।

कभी कपड़ो की धुलाई में, 
कभी सब्जी के नमक में,
कभी खीर की मिठास में,
कभी रायते की मिर्च में 
जीवन अपना 'सजाती' वो।

कभी घर को निखारने में,
कभी घरवालों को संवारने में,
कभी किताबों को जमाने में,
कभी लिहाफ को चढ़ाने में 
नियम अपना 'पाती' वो।

कभी शब्दों के जाल में,
कभी पन्नों के थाल में,
कभी कलम की स्याही में,
कभी रचना के भेदों में
अस्तित्व अपना 'तलाशती' वो


मेरी यह कविता रायपुर, छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाली खूबसूरत पत्रिका "उदंती" के मई २०१३ अंक में प्रकाशित हुई है।

Image courtesy: Google

20 comments:

  1. Oh lovely! The quintessential woman...beautifully described. Cheers to that. :)
    A thought though...the woman is what she is. It's only when not enough credits are given to her and when she is taken for granted that she begins to question her identity, her position in the scheme of things. i feel she is happy and satisfied till she is respected and feels wanted. What do u say Shaifali to this ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks for the appreciation Shivani.
      I may agree with you but haven't experienced any of this till now. This poem reflects my own pain, if I should say. Life is a challenge that keeps on challenging and finding one's identity, one's path is the hardest thing to do. I am happy I have found my path, and now the journey begins.

      Stay with me, as always.

      Delete
  2. Replies
    1. Thank you so much for stopping by. I am glad you liked the expression.

      Delete
  3. और अपने अस्तित्व की तलाश में अपना अस्तित्व ही खोती वो....
    बेहतरीन!
    कुँवर जी,

    ReplyDelete
  4. बड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है !
    आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
    एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

    ReplyDelete
    Replies
    1. संजय जी,
      आप जैसे रेगुलर पाठक गण ही कविता लिख कर प्रकाशित करने का आनंद प्रदान करते है.
      बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आयी हूँ, आशा करती हूँ अच्छे लेखन से यह आनंद हमेशा बना रहे.
      बहुत धन्यवाद।

      Delete
  5. Replies
    1. अस्थाना जी, धन्यवाद कविता पढने के लिए और समझ पाने के लिये.

      Delete
  6. कविता प्रकाशित होने हेतु,बधाई!
    अपने अस्तित्व की तलाश,औरत ....सारी उम्र करती रहती है .

    ReplyDelete
    Replies
    1. थैंक्स निधि।
      तुम्हें अपने ब्लॉग पर देखना अच्छा लगता है।
      अस्तित्व तलाशना कुछ पाने के बाद भी बना रहता है। जिस दिन यह खोज थम जाए मानो उस दिन से सीखना बंद।

      आती रहना :)

      Delete
  7. congrats first of all! U live in the States and still write in Hindi so beautifully unlike many NRIs, lovely! I loved the essence of this poem..most of the women spend this sort of life in domestic cages and with no option left, have to find happiness in sundry things...nicely written :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks! It's the kind of comment/appreciation I have never received.

      I live in US but have been in India, speaking Hindi always. Though I must admit, I started writing in English. I do it today also, but yeah! your comment made me smile. Thanks.

      Life is made of little things, women who are living in the 4 walls of their home, by choice or circumstantial, find happiness and worth in everyday things which others may demean. But, whatever it is, I believe contentment do not have to come to from big, material things. Thanks for stopping by.

      Delete
  8. सार्थक प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद राकेश जी.

      Delete
  9. बहुत खूब शेफाली जी! :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. कविता आपको पसंद आयी, जानकर ख़ुशी हुई.

      Delete
  10. जबकि अस्तित्व तो अहि ... हर जगह उसका .. अपने अंदर देखना जरूरी है उस अस्तित्व को पाने के लिए ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिलकुल सही कहा आपने। कहते है न, भगवान् मंदिरों में नहीं मिलता, वो तो घर के एक छोटे से कोने में, अपने ह्रदय में भी वास करता है. उसी तरह, अपने अन्दर झाँककर अपने आप को सदेव आगे बढ़ाने की प्रेरणा ही अस्तित्व को पाने में मदद करता है.

      Delete