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Feb 4, 2014

"पगली"


जो शब्दों में बाँधने तुम्हें चली मैं 
देखा एक मुस्कान सी तिर गयी 
तुम्हारे चेहरे पर 
जैसेबिन कहे ही कहा हो मुझे 'पगली'
"नादान! मुझे कैद करने चली है.… "
फिर भी मैंने हार न मानी 
कई विधा तुम पर वारी 
अंतस्  में फैलता तुम्हारा ओज 
लेखनी पर आने को जैसा मचल रहा था,
जो मिला था सुकूँ तुम्हारी सूरत से 
जो बरस रहा था नेह हर पोर से
सोचा -एक कविता तो अर्पण करूँ तुम्हें 
बस इसी द्दो-जहद में 
पन्नों पर कई बार लिखा नाम तुम्हारा 
हर बार नाम के साथ एक सीरत मुस्काई,
हर बार जैसे लगा थामा हो हाथ तुमने 
कभी न छोड़ जाने के एक वादे के साथ.
बस तभी शायद लगा 
सच कहा था तुमने मुझे 'पगली'
मीरा भी कह देते तो रंज न होता!
कभी आत्मा में बसे तुम,
कभी ह्रदय में समाये 
कभी किताबों के कवर पर जा विराजे 
कभी शब्दों में बिखर पड़े
ठीक ऐसे ही जैसे 
हर जगह तुम्हें ना पाकर भी
जैसे पा लिया हो तुम्हें 
सच…. मेरे कृष्णाऐसा तो तुम्हारे साथ ही होता है न!


This poem of mine was featured in NRI poetry section of Delhi International Film Festival, 2014- http://www.delhiinternationalfilmfestival.com/ - All poets->NRI poets

8 comments:

  1. Beautiful. What a remarkable achievement Shaifali. Congrats!

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  2. :) lovely !!
    - Sushmita

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  3. प्रशंसनीय - जय श्री कृष्ण

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  4. Very nice.....tinki

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    1. Very happy to see your comment. Thanks dear.

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