Pages

Mar 2, 2016

Women's Day & Dowry & Marriages...

Shaifali Gupta Dreams Blog
Image Source: Google
इस साल के फिर हम उस दिन के करीब आ गए जिसे पूरी दुनिया International Women's Day, इंटरनेशनल वीमेन’स डे के नाम से मनाती है। आजकल मार्केटिंग के चलते हर कोई वीमेन’स डे मानाने लगा है, फिर चाहे हम अपनी माँ को, या फिर अपनी बहिन को ही कोई तोहफा क्यों न दे. बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड भी अब वीमेन’स डे मनाने लगे है। मनाये, कोई गलत  बात नहीं। मुद्दा है एक ही दिन का। ये सम्मान सिर्फ एक ही दिन क्यों जताया जाए, और सम्मान का सही अर्थ क्या है?  औरत होना आसान नहीं , खासकर माँ बनने के बाद औरत के कर्तव्य निभाना एक चुनौती है। मेरी दो बच्चियाँ है, और उन दोनों का हर दिन कुछ नयापन लिए हो, वे हर दिन कुछ नया सीखे, इसी जद्दोजहद में मेरा हर दिन बीतता है (इसके अलावा घर और घर ही मेरा ऑफिस बना, वाले कई अनगिनत काम)।


लेकिन मेरा ये ब्लॉग शिकायती नहीं की माँ होना कितना मुश्किल है। वक्त के साथ मैंने बहुत कुछ सुना, देखा, समझा, पढ़ा और महसूस किया। बीते कई सालों में मेरी सोच बदली, मेरे मन के कई डर गुज़र गए, कॉन्फिडेंस बढ़ा लेकिन काफी आक्रोश भी मेरे मन में पैदा हुआ।आक्रोश शायद इस बात से जुड़ा है की मैं समाज जी बहुत सी प्रणालियों से सहमत नहीं हो पाती।


हर लड़की के माता पिता, खासकर भारत में, ताउम्र लड़की की शादी के लिए गहने, सोना जोड़ने में लगे होते है। मेरे माँ-पिता ने भी कुछ अलग नहीं किया। आज मैं सोचती हूँ क्यों ! मेरे माता पिता बहुत ही प्रोग्रेसिव है और हमेशा से रहे, अच्छी शिक्षा जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है ये जानते हुए उन्होंने हमेशा मुझे अच्छी शिक्षा के लिए प्रेरित किया और उसके लिए हर अवसर दिया। मेरी स्कूल की कई सहेलियों के परिवारवालों ने भी ऐसा किया, सभी अच्छे शिक्षित परिवार से थी, लेकिन कहीं न कहीं, समाज के आगे सभी परिवार वाले झुके। क्यों ताउम्र शादी के लिए अर्थ संजोया जाए ? आखिर शादियों में इतना खर्चा क्यों ? ऊपर से दहेज़ की माँग क्यों?


ये एक ट्रेंड बनता जा रहा है,आगे- ऊँचा और ऊँचा बढ़ता ही जा रहा है। इतना पैसा बहता है शादियों में, और जिनके पास नहीं है वे भी बेचारे इस ट्रेंड के तहत मजबूर है। और तो और दहेज़ का क्या काम? दहेज़ की प्रथा कोई नयी नहीं, सदियों पुरानी है। हमें स्कूल में छुटपन से ही सिखाया जाता है की चोरी का मतलब है जो चीज़ पर हमारा अधिकार नहीं, उसे गलत रूप से पा लेना, तो क्या दहेज़ भी चोरी नहीं हुआ? दहेज़ लेने वाले क्या चोर नहीं हुए? जो पैसा आपने नहीं कमाया, जिसके लिए आपने दिन रात एक नहीं किये, उस दौलत पर आपका क्या अधिकार? उसे मांगते हुए या उसकी इच्छा रखते हुए क्या आप चोर नहीं हुए?


लड़के के माता-पिता है तो क्या दहेज़ पर जन्मसिद्ध अधिकार जीवनसाथी तो लड़के और लड़की दोनों को ही मिल रहा है। एक समझदार, सौम्य, शांत और प्यार करने वाला जीवनसाथी पाने से बेहतर क्या ससुराल का धन, कार, शादी में की जाने वाली खातिरदारी इम्पोर्टेन्ट है?  लेकिन नहीं, दहेज़ तो हमें चाहिए ही, बोले या अनबोले। दहेज़ पर तो हमारा अधिकार तब से ही हो गया जबसे हमने एक बेटा पैदा किया… बेचारे वो जिनकी सिर्फ लड़कियाँ है उनका क्या? वे कैसे ऐसा धन जोड़ेंगे?

दहेज़ लेना चोरी है, आज के ज़माने में हम कितना ही कह ले, वक्त बदल रहा है। लड़के और लड़की का भेद कम हो रहा है, लेकिन शादी के वक्त तो पढ़ी लिखी लड़की भी अपने माँ-बाप का पैसा शादी में खर्च कराती है। क्यों? क्यूँकि वह यही देखती है, यही सुनती है। इस सोच में बदलाव लाना बहुत जरुरी है। हमें अपनी बच्चियों को ये सिखाना बहुत महत्वपूर्ण है की कोई भी गलत काम के आगे ना झुके, ना सहे। उनकी तालीम ऐसी हो, जो उन्हें हिम्मतवान बनाये, आगे और ऊँचा बढ़ने का हौसला और जूनून दे। उन्हें समझ दे की असली जीवनसाथी पैसे में नहीं, प्यार में तुलता है। जिस दिन देश के कोने कोने में औरत इतनी शक्तिशाली हो जाएगी, वीमेन’स डे उस दिन मनाने में कोई हर्ज़ा नहीं। उस दिन अलग से कोई तोहफा खरीदने की भी जरुरत नहीं।

कुछ ऐसे उदाहरण है, जो मन को शान्ति पहुँचाते है कहीं ना कहीं शायद समय और मानसकिता बदल रही है, कैसे,शादी में होने वाला अनावश्यक खर्च बचा के किसानो की मदद की गयी, यह बात तारीफ और दुआओं के काबिल है, Hats Off !

वीमेन'स डे मनाने के पहले सोचे की इस दिन का आपके लिए क्या अर्थ है और जिस नारी शक्ति को आप सम्मानित करने जा रहे है उसे आपके सम्मान-साथ या आर्थिक तोहफों की भेंट स्वीकार्य होगी?

1 comment:

  1. प्रेरक प्रस्तुति, प्रशंसनीय

    ReplyDelete