आज सुबह जब आँख
खुली
देखा उजियारे के साथ
एक अँधेरा था,
सुबह की भीनी खुशबू
के साथ
गीला सा कोई अहसास था.
यह उन दिनों में से
ऐसा दिन था,
जब बादल हो लड़ने को आतुर,
और मेघा तरसे भिगोने
को धरती.
मन खुश हुआ देख यह
आज दिन कुछ नया है
और मन भी कुछ
ठहरा हुआ.
सोचा मैंने,
ऐसी बारिश की बूंदों में
एक कप चाय की हो
जाये
और लिखी जाये कोई कविता
जिसे कहू में-
'चाय का एक कप, बारिश
और जिंदगी'.
इससे बेहतर
सुकूनमय क्या होगा
हो तल्लीन चाय की चुस्की
में जिंदगी
लेती बरखा की नन्ही बूंदों
का आनंद,
सुनती टप-टप उनका मुस्कुराता
शोर
और हू सिर्फ मै अपने
शब्दों के बीच,
शब्दों के साथ.
लेकिन अगले ही पल,
नादानी लगी मुझे और
हँस पड़ी मै
सोचा था लिखूंगी
चाय का एक कप, बारिश
और जिंदगी का विस्तार
लेकिन भूल गयी तुम्हे....
तुम तो हर मौसम
में हो,
हर ख्याल मे तुम ही तो हो..
देखो कैसे आज भी
मुस्कुरा रहे हो 'ए जिंदगी मेरी'
चाय का एक कप मेरा
बारिश के साथ देखकर....