It's a great opportunity to hear our own words recited by people with velvet voices! My poem "ख्वाब" was recited on the online radio program- शब्दों की चाक पर , episode 7. You can listen to my poem and to other poets on this link-
सुनहरे
ख्वाब जुगनू है अँधेरी रातों में
नींद
के लिहाफ में दुबके हुए ख्वाब
जिंदगी
की सरजमीं पर उगे नन्हे पौधे ख्वाब,
नई
नवेली जिंदगी का द्वार है यह ख्वाब!
बोझिल
आँखों की ठंडक
उलझे
मस्तिस्क का सुलझाव
पराजित
जीवन की विजय है
नींद
के लिहाफ में दुबके सुनहरे ख्वाब.
गिरे हुए का दृढ़ सहारा
पनपते
हुए की स्वर्णिम रश्मि
विचारते
हुए का रास्ता है
नींद
के लिहाफ में दुबके सुनहरे ख्वाब.
गिरते
अश्रुओं के फ़रिश्ते
निश्छल
मुस्कराहट की सुषमा
डबडबाई
आँखों की आशा है
नींद
के लिहाफ में दुबके सुनहरे ख्वाब.
जिंदगी
के टेढ़े-मेढ़ेपन में साथी
टूटते
हुए लम्हों में एक नई आस
पतझड़
में हरियाली लाने की शक्ति
हाँ, यही है ख्वाब- जीवन के पथ-प्रदर्शक.
अँधेरी
रातों में जुगनू ख्वाब,
नींद
के लिहाफ में दुबके ये ख्वाब
नई
नवेली जिंदगी के द्वार- ख्वाब!