बादलों का टुकड़ा चमकता
नीले से आकाश के बेक्ड्रोप पर,
खेतों की हरियाली उभरती
पत्ता-दर-पत्ता
उसके कैनवस पर,
लालिमा सूरज की कैद होती
नारंगी हरश्रृंगार सी
उसकी कूंचियों से ....
दूर से दिखाई पड़ती
रंगीन
शोख़
एक खूबसूरत तस्वीर ,
लेकिन….
लेकिन….
जो नहीं दिखता
जो नहीं उभरता
वो स्याह हो चला रंग इश्क का
शायद, वो छोड़ चली गयी उसे ...
देखो कैसे
सूरज की शोख़ी में,
फसलों की ख़ुशहाली में
अपने उँगलियों में समाई कूंची में
समेट रहा है उसे 'वो'
पगला कहीं का
दीवाना!