हर कामयाबी अपने मायने
खो देती है,
जब ज़ेहन में तुम्हारा
नाम आता है!
हर रास्ता अपनी मंजिल
छोड़ देता है,
जब दूर क्षितिज पर तुम
खड़े मिलते हो!
हर फूल अपनी रंगत पर
इठलाना भूल उठता है,
जब तुम्हारे चेहरे का
नूर सूरज चमका देता है.
ऐसा नहीं
कामयाबी की मुझे चाह नहीं,
या मंजिलों की तलाश नहीं,
फूलों से भी
कोई बैर नहीं मेरा
मैंने तो बस,
अपना हर कतरा तुम्हारे 'होने'
पर वार दिया है,
तुम नहीं तो कुछ भी और नहीं!
*Image Courtesy: Google
बहुत खूब ... प्रेम की पराकाष्ठा के सामने सब कुछ गौण हो जाता है ...
ReplyDeleteकविता का गूढ़ समझने के लिए धन्यवाद दिगम्बर जी.
Deleteबहुत खूबसूरत..!!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से व्यक्त किया!
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों से सजाया है आपने मन की बातों को, बहुत ही गहन...सुन्दर !
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