यह बड़ी ही बेखुदी
है शब्दों की
जब मन होता है
चले आते है,
सैलाब सा ला-ज़ेहन में
कागज़ पर घर बना जाते है।
लेकिन,
मैं तो माध्यम ही हूँ
इस फेरे में,
पुकारूँ जब तो रूठे हुए
भी पाती हूँ
तड़पा कर मुझे बेहिसाब
चैन जाने कहाँ पाते है
यह शब्द।
सोचती हूँ,
ऐसी भी क्या बेखुदी है
मेरे ही हो मुझसे जुदा हो जाते
है यह शब्द।
Image Courtesy: Google images
खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियों में सटीक प्रश्न छोड़ती हुई ज़बरदस्त प्रेमपरक रचना.
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