जीवन रंग-रंगीला लगता
साथ में घुली हो जब
परिवार की पंक्ति.
मेरा उत्सव तो वही कहलाता
बिछती जब परिवार की चादर
बनती उस पर संक्राति के तिल की बर्फी,
होली के नित-भावन मठरी -नमकीन,
राखी पर भाई-स्नेह के मोतीचूर,
गणेश चतुर्थी पर आस्था के मोदक,
नवरात्री में उपवासों की भीनी महक,
दशहरा पर मूंगफली की बट्टी,
दिवाली पर माँ के हाथ की चकली
और भैया दूज पर बीते कल के
अन्नकूट का स्वाद.
घर से दूर बसा संसार है मेरा,
इसलिए मेरा उत्सव यही सब
और बाकी सब जीवन उत्सव.
नित दिन, हर क्षण
जीवन उत्सव जीने की कोशिश में
आता मुझे याद मेरा यह 'उत्सव'.
Nice...
ReplyDeleteyou made me cry......
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