मनभावन लुभावना 
प्रेम मेरा मोहना 
सजा था झिलमिल 
मस्जिद की चादर-सा 
पढ़ा मैंने उसे 
अल्लाह की नमाज़-सा। 
सुकूं आया था बहुत 
चोट के मरहम-सा 
दर्द भी इक उठा था 
सागर के तूफान-सा। 
सजाया था अधरों पर 
उसे कान्हा की बाँसुरी-सा 
बिताया लम्हा दर लम्हा 
मीरा की भक्ति-सा। 
मनभावन लुभावना 
प्रेम मेरा मोहना ...
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