Nov 26, 2012

Mount Shasta....


सफ़ेद पर्वतों पर
जहाँ तुमने नारंगी आकाश
की खूबसूरती बिखरते देखी,
क्या मैं याद आयी तुम्हें?

श्वेत धवल जमे पानी पर
जहाँ रखे तुमने अपने कदम
जहाँ साँसों में भरी तुमने खूबसूरती,
क्या मैं याद आयी तुम्हें?

जिंदगी में रंग स्याह हो
या
अलसाए से निकलते सूरज
की मद्धम लौ ,
हो पर्वतों का साथ
या
गहरे समुद्र का फेन
...हर जगह मैं तुम्हे सोचती,
तुम्हे साकारती
तुम्हे ही अपने अंतस-
अपने 'ब्राह्म' में पाती ...

...इसीलिए क्या तुम्हे 'वहाँ ' मेरी याद आई !

I penned this poem being away from my husband. While I am in India and he on a vacation (being in US) to Mount Shasta  (http://en.wikipedia.org/wiki/Mount_Shasta) in California! He being a passionate and amazing photographer captured lovely clicks (the one I have put is his) of the place with snow covered mountains, sunset & sunrise with numerous beautiful shades of orange! I could relish the divinity of the place in his photos and with my words only tell him how much I missed being with him. It's not about the place but the essence of being together...

Sep 30, 2012

अभिमन्यु ...



अभिमन्यु, 
शायद दूसरा नाम है मेरा!

अभिमन्यु ही तो बन रही हूँ,
अभिमन्यु ही तो थी.
तुझसे मिलने पे समाई तुझमें
हर कतरा-कतरा, हर क्षण, हर पल
और आज,
तुझसे जुदा हो कर भी फसीं हूँ चक्रव्यूह में.

कैसे निकलूं यादों के कौरवों से बाहर,
कैसे तोड़ दूँ स्पर्श-स्पंदन-रूह के रिश्ते
लगता है, जीवन के इस लम्बे-निर्मम चक्र में
अभिमन्यु ही शायद बन रह जायेगा नाम मेरा!

I penned this poem for the 'शब्दों की चाक पर' program which is aired twice in a month on RadioPlayBackIndia. Click here to listen to this poem and many other poems based on the theme 'मेरे मन का अभिमन्यु'-


Sep 10, 2012

Black hole...



Strange it may seem,
it was a black hole once
giving in endlessly, selflessly
never a doubt of overflowing
blinding yet so much in love
it was days & night-
of this sort 'once upon a time'!

Painful it stands today
teary days & moonless nights
the endless giving had to stop
'has created a black hole of a sort
a black hole really black
a black hole so full of void
where love stands defeated today!

Jul 19, 2012

Do you know me as I am?


Wrinkles scream
the age the lines of smiles,
Forehead swarmed with
relics of expressions,
Eyes sometimes reflecting 
inner radiance
and sometimes pearls of rain...

A mind running after
goals, aims, dreams
Hands full of nerves
blood rushing up & down
following exactly the mad
rush of life...

...Age,
Goals,
Dreams,
Smiles,
Frowns
...you see it all
Still do you know me as I am?
Tell me,
did you see you in me?

Jul 16, 2012

"ख्वाब "


It's a great opportunity to hear our own words recited by people with velvet voices! My poem "ख्वाब" was recited on the online radio program- शब्दों की चाक पर , episode 7.  You can listen to my poem and to other poets on this link-



सुनहरे ख्वाब जुगनू है अँधेरी रातों में
नींद के लिहाफ में दुबके हुए ख्वाब
जिंदगी की सरजमीं पर उगे नन्हे पौधे ख्वाब
नई नवेली जिंदगी का द्वार है यह ख्वाब!

बोझिल आँखों की ठंडक 
उलझे मस्तिस्क का सुलझाव
पराजित जीवन की विजय है
नींद के लिहाफ में दुबके सुनहरे ख्वाब.

गिरे हुए का दृढ़ सहारा 
पनपते हुए की स्वर्णिम रश्मि
विचारते हुए का रास्ता है
नींद के लिहाफ में दुबके सुनहरे ख्वाब.

गिरते अश्रुओं के फ़रिश्ते
निश्छल मुस्कराहट की सुषमा
डबडबाई आँखों की आशा है
नींद के लिहाफ में दुबके सुनहरे ख्वाब.

जिंदगी के टेढ़े-मेढ़ेपन में साथी
टूटते हुए लम्हों में एक नई आस
पतझड़ में हरियाली लाने की शक्ति
हाँ, यही है ख्वाबजीवन के पथ-प्रदर्शक.

अँधेरी रातों में जुगनू ख्वाब,
नींद के लिहाफ में दुबके ये ख्वाब
नई नवेली जिंदगी के द्वार- ख्वाब! 

Jun 19, 2012

'मानसून की आहट'


हौले से इक दिन
जो अम्बर हुआ स्याह 
और बादलों में हुआ स्पंदन 
बरस पड़ी मेघा झर-झर,
एक-एक उस बूँद ने कहीं भुझाई
थकहाल तन की तपन
तो कहीं भिगोया मन तर-बतर!

कहीं बच्चों के स्वर गूंजे 
और चलने लगी कागज की
नन्ही बुलंद कश्तियाँ ,
तो कहीं कपड़े समेट
भागी गृहणियाँ अपने संसार में.

कहीं मुस्कुराएँ हरे पत्तों 
के स्वरुप, खिलीं लतायें
तो कहीं फैली खेतिहरों के
चेहरे पर तसल्ली.

मानसून का यह आगमन...
... है मायने सभी के अपने
है अपने ही आनंद
मगर खिड़की से बाहर जो मैंने झाकाँ
सोचा यह मानसून की है आहट
या अपने अन्दर उठने वाले
सागर का तूफ़ान!

सपने बुने थे किसी ख्वाब में एक बार 
पकड़ तुम्हारा हाथ
फ़ेक उस रंग-बिरंगी छतरी को
भीगूँगी जी-भर तुम्हारे साथ,
मुस्कुराउँगी आत्मा तक पोर-पोर
और
चलूंगी फलक तक बादलों पर 
तुम्हारे साथ!

सच, यह मानसून की है आहट
या तुम्हारी?


यह कविता मैंने Facebook group "शब्दों की चाक पर" के लिए theme 'मानसून की आहट' के लिए लिखी थी। यह एक तरह का contest है और चुनी हुई कवितायेँ (कवियत्री रश्मि प्रभाजी द्वारा) radioplaybackindia पर recite की जाती है।  मेरी यह कविता इस लिंक पर सुनी जा सकती है (around 16minutes playback time)-


(मानसून की आहटें और कवि मन की चटपटाहटें)

May 31, 2012

तुम हो!


तुम्हारे बारें में क्या कहूँ,
क्या लिखूं
जो अब तक नहीं कहा
जो अब तक नहीं लिखा!

साँसों में उठते तूफ़ान
से लेकर,
धड़कन में बसा उन्माद
सभी तो तुम हो!

कल तक नीले आसमान का
विस्तार थे,
तो आज इन्ही के बादलों का
स्याह रूप भी तो तुम हो!

फूलों की मोहक खुशबू
में रची बसी तुम्हारी याद,
तो तितलियों के हज़ार रंगों
में मेरा रंग तो तुम हो!

तमाम बातों एहसासों
में आदि-अंत हो तुम,
जाने-अनजाने, गाहे-बगाहे
हर शब्द की आत्मा में तो तुम हो!

कहो,
बतलाओ
दुनिया के इस अनंत स्वरुप 
में जब तुम हो
कैसे कहूँ शब्दों को बाँध 
लिया मैंने,
के अब बस परिभाषित कर दिया
मैंने,
कुछ और नहीं मेरे पास
कुछ और नहीं मेरे हाथ
क्यूंकि
हर लकीर के हर हिस्से में कहीं तो तुम हो!

This poem describes longing and pain when someone beloved is far! The presence or even a tiny glimpse of the beloved brings joy and happiness immeasurable. To surprise of many of you, I have written this poem in memory of something I used to be happy with- my work! Currently trying to find something meaningful to do in life, to accomplish something...this poem, these words shared my burden once again to bring back my hopes because the power to be happy and the feeling to feel accomplished, resides in me, just like when I say-  हर लकीर के हर हिस्से में कहीं तो तुम हो! ....the beloved is there, everywhere and hence the words can never finish their efforts describing him!

The photo has been a courtesy of my good friend and photographer, Achin- (http://www.achingrover.com/)

May 18, 2012

Soulmate!


Some thoughts often traversed my mind but the words filled my pen when I read a dear blogger friend's post about soul and body-


Thanks Saru to let my words free. Confused/weird/agendaless I may seem here but I think the truth felt by me is what I have expressed in these words. 




The heat scorching & burning
the skin,
deep within burns the flesh
full of desire!
Ostentatious it is
the material world,
still each second the blood seeps
more of it!

Was it a touch I craved for,
was it a moment I longed for,
was it a medal I ran for,
...
everything stays
life moves on,
and null moves on with me...
still we run behind a mirage!

Can words be full of
deep faith,
or is it the soul that's
the true aim?
mirror everywhere shows
what the eyes of mind weave,
so easily falling prey
overlooking how humane it is!

The deep eyes, the beautiful voice
the clasped hands, the lovely embrace
the promises, the held desire
the planning mind, the toiling hands
...
is it all what I have?
is it what I am?
or its the soulmate,
or the soul-
the one that lives
deep within the cores of heart
far from the reach of the mind
where no desire stems
where no flesh burns
where no longings scream
where no mirrors create mirage
where HE reigns!

Apr 27, 2012

ख्वाईश ....


इतनी हसरत है तुझे पाने की,
की क्या जरूरत है जिये जाने की.

लहरों को कह दो लौटने की जरूरत नहीं
रेत से कदमों के निशां तो मिट ही चुके.

जिन सूरज की किरणों ने सुबह चूमा मुझे
उन्हें देर ना लगी रात अमावस बनने में.

मन मोहक संगीत तो निकला सितार से
मगर कमभ्क्त यह कौन जाने क्या चुभा तार को.

Apr 9, 2012

आप के लिए, माँ!


Today on my Mom's special day, her birthday, I would like to share this poem with her through my blog. I penned this poem in January 2006 but never showed it to her. But today, when the distance between us is far for me to buy her a gift, I would present her with my affection and respect through 
this poem.

 


जब मुस्कुराती हूँ मैं
तुम मेरी मुस्कराहट में होती हो
मेरे साथ मुस्कुराती हुई.

जब रोती हूँ मैं 
तुम्हारी आँखें भी नम देखी है 
मेरे साथ रोती हुई.

जब पग उठाती हूँ मंजिल की ओर
होती हो हर आशीष में तुम
मुझे हिम्मत देती हुई.

जब देखती हूँ अपनी लकीरों को मैं
दिखाई देती हो उनमें साथ मेरे
मेरा जीवन बनी हुई.

जब आँखों में काजल सजा होता है
होती हो हर खूबसूरती में
मेरा रूप बनी हुई.

जब चूड़ियों को पहन इठलाती हूँ
होती हो उनकी खनक में आप
खुश होती हुई मेरे साथ.

जब सोचती हूँ,
जब सांस लेती हूँ,
पाती हूँ आपको मेरी धड़कन बने हुए,
मेरे जीवन का सार बने हुए...
...हा, सच कहा किसी ने-
'ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता
इसीलिए बनाया उसने माँ को',
इसीलिए तो-
   मेरे हर वर्ष में,
         हर मास में,
   मेरे हर दिन में,
         हर क्षण में,
    रहती हो माँ आप..
आपको बहुत स्नेह ओर नमन!

Mar 15, 2012

Just you!

                                 














Caged,
stiffled,
burning
inside!

Words,
sentences,
feelings
dying!

Dawn,
golden heat,
dusk
all forms!

Hours,
minutes,
seconds
all hands!

It's you 
everywhere
all the time!

Mar 6, 2012

Imprint...

The blaze of the Sun
scorching my naked eyes
& my mind wanders far away
as I wait on the bus-stop!

My mind wandering 
but my heart fixed,
to an image, on a thought
that's laiden only of you.

The more my heart beats
the greater goes the intensity
the desire to bloom in your garden
& feel blissed!

The more my eyes stop on you,
the more my heart stares you
it skips a beat with a touch
that's passionate & so much You!

Would it be wrong to say,
to express
to disclose in my words
how much I crave for,
how much I desire
that 'imprint'!


It does not leave us anywhere...LOVE! It follows our thoughts. I penned these words yesterday as I was waiting for a bus in hot Sun. But a thought was my shade, soothing and so my own.
*Image from the movie series Twilight, one of my most favorites love story.

Feb 29, 2012

आज फिर!

पलकों में ख्वाब लिए
आज इंतज़ार किया,
उस पैगाम का जो आया ही नहीं,
तुम्हारी साँसों में मेरा नाम नहीं
शायद आज!

आँखें बंद कर देखा मैंने
गहरे समंदर का विस्तार
याद किया नीले आकाश वाला
तुम्हारा वो प्यार, मगर बादल
बरसे आज और मेरी आँखें भी!

दिल पर हाथ रख मैंने
महसूस किया धडकनों का पागल वेग,
भाग रही थी बेतहाशा तुम्हे खोजती हुई
मगर नहीं आये तुम,
कई और दिनों की ही तरह.
पागल नादान धड़कने रूठी बैठी है अब!


नीले समंदर और नीले आकाश
में तस्वीर है तुम्हारी और तुम्हारा रंग भी,
चाहकर भी नहीं छूट पाता
जीवन में यही रंग बचा हो जैसे,
बाकी सारे रंगों से जीवन अनजान है अब शायद!

आज फिर इंतज़ार ही नाम
था मेरा दूसरा ,
बस इतना बता दो,
तुम्हारा क्या नाम था? 

Feb 14, 2012

Happy Valentine's Shona!


Love comes in many forms,
many shapes
n many sizes!

One cold winter morning
turned out a special Valentine-
four years ago,
You came into my world
and warmed me up with your presence,
with your just being there!

With shining eyes
and lips that curled in smiles every second,
you captivated me
once and forever,
for I knew I have found eternal love
in loving you!

Four years now,
and I know I dont need
a special day to say 'I Love You',
Its a secret little known to others
we speak it all the time,
every day so many times!

Love is in being together with you,
love is a fairy tale
that you read me every day,
love is naughty when I tease you,
love is beautiful when you hug me,
love is just divine when I know you are mine!

Love is soft,
love is pink,
love lives in your little gestures,
it lives in your tiny fingers, in your toes
it breaths in the word 'mamma'
that you shout everyday, from every nook & corner
of your being!

Ya, angel
Love is You, my baby!
A very Happy birthday
and a very happy Valentines too, my Shona!

This special poem is for my daughter, whom I lovingly call 'Shona'. She came into our lives on 14th February, four years ago and since then we have a new meaning of this date which the world celebrates as 'Valentine day' :-)

'I love you' - Should I say it today?


बाजारों दुकानों में
सज गए प्यार के साज़ो-सामान,
गुलाबी - लाल गुब्बारे
भर रहे होठों पर मुस्कान.

लगता वेलेंटाइन भी अब
जैसे एक त्योहार,
सन्देश प्यारे प्यारे
जो कहते हम है तुमसे दिल गए हार.

दिमाग में उठता एक सवाल
मन कहता लेकिन न पूछ,
प्यार का एक दिन, नफरत के हजार
क्या यह है हमारी सूझ-बूझ?

प्यार है अँधा और भरा इसमें जूनून
कैसे बाँध लू इस बंधन को दिन में एक,
जबकि जानू मैं जलते ख्वाबो-ख्वाईशों
के दीये हर पल हर सांस में अनेक.

तुमसे जुड़ कर लगता मुझे
जैसे प्यार ही जिंदगी की सीरत,
हर क्षण, हर लम्हा
जैसे हो बढती हुई तुम्हारी जरुरत.

प्यार एक दिन नहीं, एक हफ्ता-साल नहीं
एहसास ऐसा जो खत्म न हो कभी,
एक जन्म लगता कम मुझे
जतलाऊं बताऊँ जितना भी, कम फिर भी.

शब्द-दर-शब्द पिरोती जाऊं
जैसे हो माला 'उसकी',
हर मोती संग पाती जाऊं तुम्हे
जैसे हो 'उसकी' छवि-सी.

हर साँस-साँस तुम्हारा ख़याल
हर धड़कन तुम्हारी आरज़ू,
कैसे संभालूं यह मन के ज़ज्बात
तुम शब्द नहीं मेरे, बस आत्मा की जुस्तजू!

Love is not dependent on a day. The strong urge to be with that someone special, to express our feelings and emotions, to hold someone's hand, to share a hug, to light up the day with a kiss, to say kind and true words, all this does not wait for Valentine's day! Somewhere in my heart, today I am happy and I want to say 'I Love You' to the special people I love, but at the same time my mind asks me this question, why just one day, why just today? I hope my confusion is clear through this poem and my love too!!!! :-)

May God bless you with lots of love, not just today but every day.

Feb 1, 2012

तुम्हारी कमी...



आज यूँ ही एक ख्याल
गुजरा मेरे रास्ते से,
शायद क्यूंकि
तुम मेरे साथ नहीं आज!

ख्याल ने झाँका मेरे अंतर्मन में
पढ़ा मेरी बेचैनी को
और सोचा
क्या यह मुमकिन है
कि छूकर किसी याद को
ऐसा लगे कि जैसे मैंने छुआ हो तुम्हें ?

जब तुम्हारी कमी खलने लगती है
दुनिया अजीब सी लगती है मुझे
शायद क्यूंकि हर शख्स में तुम ही नजर आते हो
हर आवाज में तुम्हारी ही खनक होती है
और हर धड़कन में तुम्हारे नाम की ही दुआ !

क्या छूकर किसी किताब
या पन्ने को, 
या तुम्हारे छोड़े गए ग्लास को
या फिर तुम्हारी किसी तस्वीर को
क्या कम लगेगी मुझे तुम्हारी कमी,
क्या लगेगा जैसे मैंने छुआ हो तुम्हे
और तुमने भी बालों में मेरे उंगलिया फिराई हो जैसे?

नादान ख्याल है
मगर सच में सोचती हूँ ऐसा
काश किसी याद को सिरहाने रख कर सो जाऊं 
और पा जाऊं तुम्हे तब 
जब तुम्हारी कमी पूरी दुनिया
की लम्बाई, चौडाई, गहराई
से भी ज्यादा लगने लगे मुझे !

क्या यह मुमकिन है ?

Jan 29, 2012

चाँद और तुम!

चाँद को पाना संभव है शायद
और तुम्हे?

चाँद को छूने की ख्वाइश,
सितारों को करीब से देखने की आरजू
थी दिल में
मगर एहसास-ए-बुलंदी नहीं थी
की मुमकिन हो ऐसा,
तभी मिली मै तुमसे
और भूल गयी सब चाँद-सितारे
रम गयी तुम्हारी ख्वाइश में ऐसे
लेकिन जब आँख खुली
समझ आया
उन्हें पाना संभव है शायद
और तुम्हे?

मन का दरिया
श्वेत कमल सा रंग लिए
तुम्हारी ओर बह रहा था जोरों से,
आसमान के चाँद का अक्स
देखा करता था अपने आईने में
इठलाता था तुम्हे पाने की आस में
लेकिन जब संगीत ख़त्म हुआ और
जिंदगी ने नाच नचाया
बिन सवाल ही जवाब आया
चाँद का अक्स और चाँद खुद ही पाना
संभव है शायद
और तुम्हे?

I came across this beautiful expression today for the first time- 'I love you to the Moon & Back' . Isin't a lovely statement to say & feel, so here I am with my latest words. 

Jan 17, 2012

कुछ दर्द....

कुछ दर्द के शब्द नहीं होते,
एकदम चुप 
मगर साथ चलते है वो हरदम.

हर दर्द,
हर ख़ुशी
पर छलक के आँखों
में आ जाते है,
कभी कोमल मुस्कान
तो कभी गहन एहसास
से सराबोर कर जाते है मन को.

साथ निभाते,
हाथ पकड़,
हर दिन हर रात
जेहन में आते है यह कुछ दर्द.
अजीब से है!
मुझे रौशनी दिखाते
कभी अंधेरो में जो खुद जन्मे!

सोचो तो उनका अस्तित्व
व्यर्थ,
मगर जानो तो उनका है
एक लक्ष्य आत्मिक
जोड़ दे मुझे जो 'शक्ति' से
जिसने तोडा मुझे भरपूर बल से
अजीब से है ऐसे कुछ दर्द!

Life is strange! Change is the constant change. Incidents/events in life sometimes leaves us with marks on our heart and mind. Marks, images, thoughts, realities, tears and feelings which we can never erase, which we never wished for in the first place. These marks are like shadows in the day and darkness in the night- ever with us. They happened for some purpose, HE gave them to us in hope we would cut straight through them and emerge stronger (though we were left hugely weak & hurted). Easier written than done and felt. If we stand up each day with a little hope and a little curve on our lips, we could pray for strength and faith through out the day. And I believe, sometimes it's no harm in giving up hope. May be, that's the best we can do on that day and wait for yet another day we can reshape ourselves to fight the pain inflicted on us. HE is there with us, even if, may be he shows his presence in the pain.