बदला न अपने आप को जो थे वही रहे,
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे.
दुनिया ना जीत पाओ तो हारों ना खुद को तुम,
थोडी बहोत तो झहन में नाराज़गी रहे.
अपनी तरह सभी को भी किसी कि तलाश थी,
हम जिसके भी करीब रहे दूर ही रहे.
गुजरो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो,
जिसमे खिले हैं फूल वह डाली हरी रहे.