पिछली सर्दियों में
बड़ी गरमाई थी....
पैबन्दों के समान
वक्त के छोटे टुकड़े
साथ बिताये थे जो तुम्हारे,
पिछले जाड़ों में
टांक लिए थे एक 'शॉल' में
मैंने उनको!
इस जाड़े तक
जाने कैसे
जाने कब
शॉल अब उधड़ी सी दिखती है
कही सिलाई खुली
कही धागे टूटे
ठीक मेरी तुम्हारी तरह!
इस जाड़े में
यादों की शॉल
शीत रही है मन को
.... जाने कब
वो गरमाहट लौटेगी
.... जाने कब
हम तुम साथ बैठ
ओढ़ेगे स्नेह की शॉल
.... जाने कब
यादों के पैबन्दों पर न टिका होगा
कोई मौसम!
This poem of mine was published in वटवृक्ष on January 1st, 2013.
.........बेहतरीन रचना देने के लिए आभार शैफाली जी
ReplyDeleteबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ !!!
ReplyDeleteसुन्दर....
ReplyDeleteजानलेवा यादें ...खुशनुमा यादें ....