देखा एक मुस्कान सी तिर गयी
तुम्हारे चेहरे पर
जैसे, बिन कहे ही कहा हो मुझे 'पगली'
"नादान! मुझे कैद करने चली है.… "
फिर भी मैंने हार न मानी
कई विधा तुम पर वारी
अंतस् में फैलता तुम्हारा ओज
लेखनी पर आने को जैसा मचल रहा था,
जो मिला था सुकूँ तुम्हारी सूरत से
जो बरस रहा था नेह हर पोर से
सोचा -एक कविता तो अर्पण करूँ तुम्हें
बस इसी जद्दो-जहद में
पन्नों पर कई बार लिखा नाम तुम्हारा
हर बार नाम के साथ एक सीरत मुस्काई,
हर बार जैसे लगा थामा हो हाथ तुमने
बस तभी शायद लगा
सच कहा था तुमने मुझे 'पगली'
मीरा भी कह देते तो रंज न होता!
कभी आत्मा में बसे तुम,
कभी ह्रदय में समाये
कभी किताबों के कवर पर जा विराजे
कभी शब्दों में बिखर पड़े,
ठीक ऐसे ही जैसे
हर जगह तुम्हें ना पाकर भी
जैसे पा लिया हो तुम्हें
सच…. मेरे कृष्णा, ऐसा तो तुम्हारे साथ ही होता है न!
This poem of mine was featured in NRI poetry section of Delhi International Film Festival, 2014- http://www.delhiinternationalfilmfestival.com/ - All poets->NRI poets
Beautiful. What a remarkable achievement Shaifali. Congrats!
ReplyDeleteThanks a lot Saru.
Delete:) lovely !!
ReplyDelete- Sushmita
Lovely as always to have you here. :)
Deleteप्रशंसनीय - जय श्री कृष्ण
ReplyDeleteThank you Rakesh ji.
DeleteVery nice.....tinki
ReplyDeleteVery happy to see your comment. Thanks dear.
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