भीड़ में रहकर भी सबसे जुदा
सितारों के संग रहकर भी चाँद बनूं
ये ख़्वाहिश है मेरी ...
राहों में रहकर भी राहगीर नहीं
पानी में बनती बिगड़ती लहर न हूँ
ये ख़्वाहिश है मेरी ...
काटों पर चलकर भी दर्द न हो महसूस
आँसूंऔ में रहकर भी इक मुस्कराहट बनूँ
ये ख़्वाहिश है मेरी ...
समंदर के करीब रहकर कोलाहल नहीं
वरन उसके भीतर का गाम्भीर्य बनूँ
ये ख़्वाहिश है मेरी ...
शोर के बीच गरज नहीं
वरन उसके बीच की नन्ही ख़ामोशी बनूँ
ये ख़्वाहिश है मेरी ...
भीड़ में रहकर भी सबसे जुदा
सितारों के संग रहकर भी चाँद बनूँ
ये ख़्वाहिश है मेरी ...
This poem of mine is very close to my heart as it portrays my inner dreams and wishes. I wrote it long back, somewhere around year 1999, but still holds true. I am glad, it got a place in one of my favorite publications "हिंदी चेतना", a quarterly publication from Canada. Click here to read it, along with my other poems-
Image courtesy: Google
(These colorful butterflies signifies freedom, dreams and happiness to me. )
एक पूरा शब्दचित्र खींच दिया है......कितनी सहज ढंग से लिखी कविता हैं.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव..
सितारों के संग रहकर भी चाँद बनूँ ..... सुंदर रचना .
ReplyDeleteBeautiful Poem!
ReplyDelete