वक्त के साये में
सदा ही रहते हम,
लगता हमें कभी है काबू
और कभी बेकाबू
बस इसी जद्दोजहद में
जीते हम लोग।
किसने क्या पाया
क्या अधूरा सा रह गया
जा रहा साल कराता ये हिसाब,
नहीं कभी कोई रहता हर पल
होना ही है फ़ना एक दिन सभी को
इंसान या वक्त।
विदा हुआ वर्ष जो कल तक था
हमारा अपना
आज बाहें फैलाए हम मचलते
नव वर्ष के लिए,
क्या नहीं तड़पता जूना वर्ष
छोड़ उसे दिया हमने बस घड़ी की इक सूई पर।
नहीं नहीं! वक्त नहीं रुकता कहीं पर
हम भी साथ चले तो पाएंगे स्वप्न,
जो खड़े ताकते रहे
रह जायेंगे हो कर बदलते वर्षों का शिकार
आओ, करे ये वर्ष अपने नाम
सिर्फ अपने ही नाम!
छोड़ सब व्यर्थ के बोझों को
ले अपने कंधे पर स्वयं का सार्थक बोझ
बुने नए स्वप्न,नई अभिलाषाएं
जोड़ कर हाथ ले ईश्वर का साथ
और मिला कर हाथ करें जी-तोड़ मेहनत
बस फिर हर वर्ष खुशियों के नाम
हमारे और हमारे अपनों के नाम!
Wishing all my readers and visitors a very happy 2016. Dream big and work hard.
Image Source: Google Images
Yay! Good start of the New Year...This poem was selected by Blog Adda as one of the best for Tangy Tuesday Picks, edition dated January 05, 2015.!
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