Apr 27, 2012

ख्वाईश ....


इतनी हसरत है तुझे पाने की,
की क्या जरूरत है जिये जाने की.

लहरों को कह दो लौटने की जरूरत नहीं
रेत से कदमों के निशां तो मिट ही चुके.

जिन सूरज की किरणों ने सुबह चूमा मुझे
उन्हें देर ना लगी रात अमावस बनने में.

मन मोहक संगीत तो निकला सितार से
मगर कमभ्क्त यह कौन जाने क्या चुभा तार को.

Apr 9, 2012

आप के लिए, माँ!


Today on my Mom's special day, her birthday, I would like to share this poem with her through my blog. I penned this poem in January 2006 but never showed it to her. But today, when the distance between us is far for me to buy her a gift, I would present her with my affection and respect through 
this poem.

 


जब मुस्कुराती हूँ मैं
तुम मेरी मुस्कराहट में होती हो
मेरे साथ मुस्कुराती हुई.

जब रोती हूँ मैं 
तुम्हारी आँखें भी नम देखी है 
मेरे साथ रोती हुई.

जब पग उठाती हूँ मंजिल की ओर
होती हो हर आशीष में तुम
मुझे हिम्मत देती हुई.

जब देखती हूँ अपनी लकीरों को मैं
दिखाई देती हो उनमें साथ मेरे
मेरा जीवन बनी हुई.

जब आँखों में काजल सजा होता है
होती हो हर खूबसूरती में
मेरा रूप बनी हुई.

जब चूड़ियों को पहन इठलाती हूँ
होती हो उनकी खनक में आप
खुश होती हुई मेरे साथ.

जब सोचती हूँ,
जब सांस लेती हूँ,
पाती हूँ आपको मेरी धड़कन बने हुए,
मेरे जीवन का सार बने हुए...
...हा, सच कहा किसी ने-
'ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता
इसीलिए बनाया उसने माँ को',
इसीलिए तो-
   मेरे हर वर्ष में,
         हर मास में,
   मेरे हर दिन में,
         हर क्षण में,
    रहती हो माँ आप..
आपको बहुत स्नेह ओर नमन!