Feb 28, 2013

'कान्हा'


साँझ की बेला से 
गोधूली के संगीत तक,

धरती के खिंचाव से 
आकाश की विशालता तक,

दूब की नरमाहट से 
पतझड़ की सर-सराहट तक,

जीवन की भटकन से 
मोक्ष की आस तक,

बस तुम ही हो मेरे पास 
मेरे 'कान्हा'
जो थामा है हाथ मेरा
जो संबल दिया कदमों को 
जो शक्ति भरी आत्मा में 
बस,
बने रहना मेरे 'सारथी'
उस एकल 'होने' के क्षण से 
उस एकल अंतिम 'विदा' तक!


Today, my morning started with the song 'Hamko man ki shakti dena, mann vijay kare'. It filled me with bhakti once again for my dearest God, my belief- Lord Krishna. He for me (like lot of others) is the epitome of love, on which is based this world. Be it love felt for our parents, our partner, our friends, our kids, or our goals...I see him with me in every of my action. This poem is dedicated to him, asking him to bestow upon me his 'companionship' from the moment I arrived in his creation, till my last breath. 

Feb 13, 2013

हरसूं तुम ...




सूरज की कविता कहूँ या 
चाँद का जिक्र करूँ ...

खुशबू में इठलाऊ या 
तितलियों में रंग भरूँ ...

पहाड़ों में गुनगुनाऊ या
दरख्तों में विचरण करूँ ...

शब्दों में सजाऊं या 
एहसासों में पिरोउं  ...

... हर भाव 
    हर प्रकृति 
    हर सीरत 
    हर सूरत 
बस तुम्हें ही पाऊं !

पिछला जाड़ा !


पिछली सर्दियों में
बड़ी गरमाई थी....

पैबन्दों के समान

वक्त के छोटे टुकड़े
साथ बिताये थे जो तुम्हारे,
पिछले जाड़ों में
टांक लिए थे एक 'शॉल' में
मैंने उनको!



इस जाड़े तक
जाने कैसे
जाने कब
शॉल अब  उधड़ी सी दिखती है
कही सिलाई खुली
कही धागे टूटे
ठीक मेरी तुम्हारी तरह!



इस जाड़े में
यादों की शॉल 
शीत रही है मन को
.... जाने कब
वो गरमाहट लौटेगी
.... जाने कब
हम तुम साथ बैठ
ओढ़ेगे स्नेह की शॉल 
.... जाने कब
यादों के पैबन्दों पर न टिका होगा
कोई मौसम!



This poem of mine was published in वटवृक्ष on January 1st, 2013.