Dec 3, 2014

प्रेम मोहना



मनभावन लुभावना 
प्रेम मेरा मोहना 

सजा था झिलमिल 
मस्जिद की चादर-सा 
पढ़ा मैंने उसे 
अल्लाह की नमाज़-सा। 

सुकूं आया था बहुत 
चोट के मरहम-सा 
दर्द भी इक उठा था 
सागर के तूफान-सा। 

सजाया था अधरों पर 
उसे कान्हा की बाँसुरी-सा 
बिताया लम्हा दर लम्हा 
मीरा की भक्ति-सा। 

मनभावन लुभावना 
प्रेम मेरा मोहना ...

Image courtesy: Google Images

1 comment:

  1. बहुत सुंदर एहसास.... के साथ... मन को छू लेने वाली कविता....

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