Dec 12, 2015

"खुदा"


खुदा मस्जिदों में
नहीं मिला करता
ना ही मंदिरों के
कीर्तन में श्याम
सजा मिलता है ।

मौजूद है 'ईश'
मेरे कण-कण में,
रगों में दौड़ते
खून की गर्मी में,
साँस लेते इनमें
मेरे लक्ष्यों में ।

जो खुद को पा जाऊँ
पा सकूँगी गीता के सार को,
जो भेद पाऊँ निशाना
अर्जुन की मानिन्द
बन पाएँगे मोहन
सारथी मेरे।

वर्ना तो
मंदिरों मस्जिदों के
फेरों में,
गोधूलि के जाप में,
अजानों की पुकार में
बस यूँ ही
मिटती जाऊँगी मोक्ष की तलब में।   

*Image Courtesy: Google Images

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