Showing posts with label Parents. Show all posts
Showing posts with label Parents. Show all posts

Jun 19, 2011

For Papa, especially today, on Father's day!

I love you, papa!

शायद ही कभी यह शब्द कहे है मैंने, मगर लिखे जरूर है, और यह भी उतना ही सच है की यह शब्द बोल पाना मुश्कील है क्यूंकि हमेशा से ऐसे घर और वातावरण मे पली हू जहा पर अपने मन के यह भाव बोलना नहीं सीखा! इसका मतलब यह है की यह भाव और स्नेह को शब्दों की जरूरत नहीं है, वरन यह तो उतने ही स्वाभाविक है जैसे की सूरज की रौशनी और चंद्रमा की चांदनी. लेकिन, आज मै बहुत कुछ और पापा से कहना चाहती हू, फादर्स डे तो सिर्फ एक ओकेजन है!

नीचे लिखी हुई यह कविता मैंने कही इन्टरनेट से ली है, और हमेशा से पापा के लिए इसके शब्दों को सच पाया है:

"आशीष पिता के"

भरी धूप मे छाव सरीखे
तूफानों मे नाव सरीखे
खुशियों मे सौ चाँद लगाते
साथ साथ आशीष पिता के.

हाथ पकड़ कर
भरी सड़क को पार कराते
उठा तर्जनी
दूर कही गंतव्य दिखाते
थक जाने पर गोद उठाते
धीरे धीरे कोई कहानी कहते जाते
साथ साथ आशीष पिता के.

दिन भर खटते
शाम ढले पर घर को आते
हरे बाग़ मे खेल खिलाते
घास काटते
फूलों को मिल कर दुलराते
तार जोड़ते नल सुधराते
साथ साथ आशीष पिता के.

***
कितनी सच है यह लाइन - 'तार जोड़ते नल सुधराते' ....घर मे कैसे काम का डिविज़न रहता है...मम्मी रसोई मे, पापा दूकान पर.....हर चीज जैसे घडी के कांटे जैसे चलती और होती थी....परफेक्ट एकदम. मम्मी पापा कैसे अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए साथ साथ चलते है! मैंने शायद ही कोई तकरार देखी हो जिसमे कोई एक दूसरे को कुछ बोल रहा हो की तुमने वोह नहीं किया या ऐसे नहीं किया....हर चीज, हर जिम्मेदारी पूरी तरह से फिनिश होती थी और होती है आज भी.

लेकिन  मम्मी पापा कितने अलग इंसान होते है. एक मौखिक तो दूसरा एकदम शांत, कहने का मतलब मम्मी अपने emotions  एक्सप्रेस करती है मगर पापा शांत, अपने अन्दर न जाने क्या क्या रखते है....असंख्य संघर्ष की कहानियों से भरे होते है पापा और फिर भी चेहरे पर कोई भी ऐसा भाव नहीं. हर बार बस यही कहता है उनका चेहरा...'सब ठीक है, मै हु हमेशा तुम लोगो के साथ....''! सोचती हु क्या बन पाऊँगी कभी उनके जैसी शांत, और सरल!

अपनी diary के पन्ने पलटते हुए मुझे यह poem मिली जो मैंने पापा के लिए लिखी थी,  अक्टूबर 2004  मे, लेकिन कभी भेजी ही नहीं, सोचा सब senti हो जायेंगे, लेकिन आज इस poem को शेयर करना चाहती हू पापा से, ख़ास आज के दिन, fathers day पर!

" मेरा ख़त, फॉर dearmost पापा! "-
ख़त जो आपको लिखा है
उसमे शब्दों के अन्दर पढना,
स्याही को नीला न समझना
उसमे भरे है मेरे भाव
जो शायद शब्दों मे नहीं दिखते.

शब्द मेरे दिखाते है खुशिया
लेकिन आपके साथ न होने
से होता गम छुपा जाते है यह.

ख़त के कागज पर
खिला है हमारे घर का नक्शा,
कैसे आप सभी के कदम
चलते यहाँ वहाँ दिखते है मुझे,
रसोई मे मम्मी का काम करना
वोह मिक्सी की आवाज मे टीवी का न सुनाई देना
वोह आपका मोटर का खटका दबाना
और मम्मी की वाही बातें,
यह सब नहीं दिखाता मेरा ख़त आपको
लेकिन मेरी आँखों के सामने से नहीं हटते यह पल.

मेरा ख़त नहीं सुनाता
आपकी नन्ही तालियों की आवाज जो आरती के
वक्त हम सुनते थे,
वो हम सबका बारी बारी से पूजा करना,
वो मम्मी का रोज धयान से पूजा करना,
वो उनका पुष्पा का इन्तेजार
और सौरभ और मेरा देर से सोकर उठना
छुपा जाता है यह सब मेरी यादें मेरा ख़त!

मेरा ख़त समेटे है अपने मे
भूले बिसरे दिन,
लेकिन यह सिर्फ महसूस किये जाते है,
वोह मेरा अपने कमरे को ठीक करना
और वोह sauru का हेलमेट और मोजो
पर मेरा चिल्लाना,
वोह उसकी घडी छुपा देना
उसे बात बात पर परेशान करना
सच अब सोचती हू क्यों परेशान किया
उसे मैंने
पर अब उतना ही उससे कई कई
ज्यादा प्यार करती हू उसे,
और भगवान् मे ज्यादा आस्था है अब मेरी
आप लोगो के लिए,
नहीं दिखाता ना यह सब मेरा ख़त,
पढो जब मेरा ख़त आप
समझ जाना खुश तो मै हू बहुत
अपने भविष्य और अपने आज के लिए
लेकिन अपने हाथों में मेरा कल
हमारा बीता हुआ कल, सब समेट लेना चाहती हू,
रहना चाहती हू आप सबके साथ
एक बार फिर
....हा, बहुत याद करती हू मै आप सबको
यही कहते है मेरे शब्द,
मेरा ख़त!

***Happy Fathers day, papa! You are the best!